15-09-71  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

मास्टर ज्ञान-सूर्य आत्माओं का कर्त्तव्य

इस संगठन को कौनसा संगठन कहेंगे? इस संगठन की विशेषता क्या है? जो विशेषता है उसी प्रमाण ही नाम कहेंगे। इस संगठन की क्या विशेषता है जो और संगठन में नहीं देखी? अपने संगठन की विशेषता को जानते हो? यह संगठन सारे ब्राह्मण परिवार से विशेष आत्माओं का संगठन है। लेकिन इस विशेष आत्माओं के संगठन की विशेषता यह है - इसमें सर्व प्रसिद्ध नदियों का मेला है। नदियों के ऊपर अनेक प्रकार के विशेष दिनों पर मेले होते हैं। लेकिन यह मेला प्रसिद्ध नदियों का है। ज्ञान-सागर से निकली हुई पतित-पावनी नदियों का मिलन है। अपने को पतित-पावनी समझती हो? अगर पतित-पावनी हो तो मुख्य बात जानती हो कि पतित- पावनी कौन बन सकती है? पतित-पावनी बनने के लिए मुख्य कौनसी बात स्मृति में रखो जिससे कैसा भी पतित, पावन बन जाये? कोई भी पतित आत्मा का संकल्प भी समा जाये। इसके लिए मुख्य बात यही सदा बुद्धि में रहनी चाहिए कि मैं सर्व आत्माओं के पतित संकल्पों वा वृत्तियों वा दृष्टि को भस्म करने वाली मास्टर ज्ञान-सूर्य हूँ। अगर मास्टर ज्ञान-सूर्य बनकर कोई भी पतित आत्मा को देखेंगे, तो जैसे सूर्य अपनी किरणों से किचड़ा, गन्दगी के कीटाणु भस्म कर देते हैं, वैसे कोई भी पतित आत्मा का पतित संकल्प भी पतित- पावनी आत्मा के ऊपर वार नहीं कर सकता। और ही पतित-आत्माएं आप पतित-पावनियों के ऊपर बलिहार जायेंगी। अगर कोई भी पतित आत्मा का पतित-पावनी के प्रति पतित संकल्प भी उत्पन्न होता है, तो क्या समझना चाहिए कि माइक बनी हो, माइट-हाउस नहीं बनी हो। इसलिए जैसे माइक का आवाज़ बहुत मीठा भी लगता है और माइक अर्थात् आवाज़ कनरस की प्राप्ति कराता है, लेकिन माइट-हाउस स्थिति मनरस का अनुभव कराती है। अगर एक बार भी इन्द्रियों का रस अनुभव करते हैं तो यह इन्द्रियों का रस अनेक अल्पकाल के रस तरफ आकर्षित कर देता है।

कोई भी पतित आत्मा का किसी भी इन्द्रियों के रस अर्थात् विनाशी रस के तरफ आकर्षण न हो, आते ही अलौकिक-अतीन्द्रिय सुख वा मनरस का अनुभव करें। इसके लिए पहले पतित-पावनियों की मन्मनाभव की स्थिति होनी चाहिए। अगर स्वयं कोई भी देह-अभिमान वा देह की दुनिया अर्थात् पुरानी दुनिया के कोई भी वस्तु के रस में ज़रा भी फंसे हुए होंगे, तो वह अन्य को मनरस का अनुभव कैसे करा सकेंगे? कलियुगी स्थूल वस्तुओं की रसना वा मन का लगाव मिट भी गया है, लेकिन इसके बाद फिर कौनसी स्टेज से पार होना है, वह जानती हो? लोहे की जंजीरें, मोटी-मोटी जंजीरें तो तोड़ चुकी हो, लेकिन बहुत महीन धागे कहां-कहां बन्धनमुक्त नहीं बना सकते। वह महीन धागे कौनसे हैं? यह परखना भी बड़ी बात नहीं इस ग्रुप के लिए। जानती भी हो,चाहती भी हो फिर बाकी क्या रह जाता है? सभी में महीन से महीन धागा कौनसा है, जो ज्ञानी बनने के बाद नया बन्धन शुरू होता है? (हरेक ने सुनाया) यह सभी नोट करना, यह नोट काम में आयेंगे। और भी कुछ है? इस ग्रुप में गंगा-यमुना इकट्ठी हो गई हैं। यह विशेषता है ना। सरस्वती तो गुप्त होती है। इसका भी बड़ा गुह्य रहस्य है कि गंगा कौन और यमुना कौन है! पहले यह तो बताओ कि सभी से महीन धागा कौनसा है? फिर इससे आपेही समझ जायेंगे गंगा कौन, यमुना कौन? सभी से महीन और बड़ा सुन्दरता का धागा एक शब्द में कहेंगे तो ‘मैं’ शब्द ही है। ‘मैं’ शब्द देह-अभिमान से पार ले जाने वाला है। और ‘मैं’ शब्द ही देही-अभिमानी से देह-अभिमान में ले आने वाला भी है। मैं शरीर नहीं हूँ, इससे पार जाने का अभ्यास तो करते रहते हो। लेकिन यही मैं शब्द कि - ‘‘मैं फलानी हूँ, मैं सभी कुछ जानती हूँ, मैं किस बात में कम हूँ, मैं सब कुछ कर सकती हूँ, मैं यह-यह करती हूँ और कर सकती हूँ, मैं जो हूँ जैसी हूँ वह मैं जानती हूँ, मैं कैसे सहन करती हूँ, कैसे समस्याओं का सामना करती हूँ, कैसे मर कर मैं चलती हूँ, कैसे त्याग कर चल रही हूँ, मैं यह जानती हूँ’’ - ऐसे मैं की लिस्ट सुल्टे के बजाय उलटे रूप में महीन, सुन्दरता का धागा बन जाता है। यह सभी से बड़ा महीन धागा है। न्यारा बनने के बजाय, बाप का प्यारा बनाने के बजाय कोई-न-कोई आत्मा का वा कोई वस्तु का प्यारा बना देता है। चाहे मान का प्यारा, चाहे नाम का प्यारा, चाहे शान का प्यारा, चाहे कोई विशेष आत्माओं का प्यारा बना लेता है। तो इस धागे को तोड़ने के लिये वा इस धागे से बन्धनमुक्त बनने के लिए क्या करना पड़े? ट्रॉन्सफर कैसे हो?

ज़िम्मेवारी, ताजधारी ग्रुप को ही मंगाया है ना। ज़िम्मेवारी के लक्ष्य को धारण करने वाला ग्रुप तो हो ही। बाकी क्या चाहिए? निरहंकारी हो? निराकारी हो? अगर निराकारी स्थिति में स्थित होकर निरहंकारी बनो तो निर्विकारी आटोमेटिकली हो ही जायेंगे। निरहंकारी बनते ज़रूर हो लेकिन निराकार होकर निरहंकारी नहीं बनते हो। युक्तियों से अपने को अल्प समय के लिए निरहंकारी बनाते हो, लेकिन निरन्तर निराकारी स्थिति में स्थित होकर साकार में आकर यह कार्य कर रहा हूँ - यह स्मृति वा अभ्यास नेचरल वा नेचर न बनने के कारण निरन्तर निरहंकारी स्थिति में स्थित नहीं हो पाते हैं। जैसे कोई कहाँ से आता है, कोई कहाँ से आता है, उसको सदा यह स्मृति रहती है कि मैं यहाँ से आया हूँ। ऐसे यह स्मृति सदैव रहे कि मैं निराकार से साकार में आकर यह कार्य कर रही हूँ। बीच-बीच में हर कर्म करते हुए इस स्थिति का अभ्यास करते रहो। तो निराकार हो साकार में आने से निरहंकारी और निर्विकारी ज़रूर बन जायेंगे। यह अभ्यास अल्पकाल के लिए करते भी हो, लेकिन अब इसी को सदाकाल में ट्रॉन्सफर करो। यूं वैरागी भी बने हो, वैराग्य वृत्ति है, लेकिन सदाकाल के लिए और बेहद के वैरागी बनो। नहीं तो कोई हद की वस्तु वैराग्य वृत्ति से हटाने के लिए निमित्त बन जाती है। योगयुक्त भी हो लेकिन योगयुक्त की निशानी प्रैक्टिकल कर्म में दिखाओ। आपका हर कर्म, हर बोल किसी भी आत्मा को भोगी से योगी बनाये। हर संकल्प, हर कर्म युक्तियुक्त, राज़युक्त, रहस्ययुक्त हो - इसको कहा जाता है प्रैक्टिकल योगयुक्त। अपने संकल्प वा बोल में, कर्म में अगर यह तीन बातें नहीं तो व्यर्थ है। अगर राज़युक्त नहीं होगा तो क्या होगा? व्यर्थ। समझना चाहिए कि अभी प्रैक्टिकल योगी नहीं हैं लेकिन प्रैक्टिस करने वाले योगी हैं। तो अभी इस बात के ऊपर अटेन्शन की आवश्यकता है। फिर कोई भी समस्या वा विघ्न, सरकमस्टॉन्स आप के ऊपर वार नहीं कर सकेंगे। प्रैक्टिकल में योगयुक्त, ज्ञानयुक्त, स्नेहयुक्त, दिव्य अलौकिक मूर्त से विश्व के आगे प्रूफ अर्थात् प्रमाण बन जायेंगे। जो विश्व के आगे ज्ञान और योग का प्रूफ बनते हैं वही माया-प्रूफ होते हैं। तो माया-प्रूफ होने के लिए अपने को यही समझो कि मैं ज्ञान और योग का प्रूफ हूँ। यह प्रमाण रूप बनना, आत्माओं के अरमानों को खत्म करने वाला है। सदा हर संकल्प और कदम बाप के फरमान पर चलने वाले अन्य आत्माओं के अरमानों को खत्म कर सकते हैं। अपने अन्दर भी पुरूषार्थ का, सफलता का अरमान रह जाता है, इसका भी कारण कि कहाँ न कहाँ, कोई न कोई फरमान नहीं पालन होता है। तो जिस घड़ी भी अपने पुरूषार्थ के ऊपर वा सर्विस की सफलता के ऊपर वा सर्व के स्नेह और सहयोग की प्राप्ति के ऊपर ज़रा भी कमी वा उलझन आये तो चेक करो कि कौनसे फरमान की कमी है जिसका प्रत्यक्ष फल एक सेकेण्ड के लिए भी अनुभव कर रहे हैं! फरमान सिर्फ मुख्य बातों का नहीं, फरमान हर समय के हर कर्म के लिए मिला हुआ है। सवेरे अमृतवेले से लेकर रात तक अपनी दिनचर्या में जो फरमान मिले हुए हैं उनको चेक करो। वृत्ति को, दृष्टि को, संकल्प को, स्मृति को, सर्विस को, सम्बन्ध को सभी को चेक करो। जैसे कोई मशीनरी चलते-चलते स्पीड ढीली हो जाती है तो सभी औजारों को चेक करते हैं, चारों ओर से चेकिंग करते हैं। ऐसे चारों तरफ की चेकिंग करने से स्पीड तेज कर सकेंगे। क्योंकि अब रूकने की बात खत्म हुई, अब है स्पीड को तेज करने की बात। जो भी स्टेज सुनी है उस पर ठहरते भी हो और पुरूषार्थ में विशेष आत्माएं भी हो।

स्टेज को चेक करने में ठीक हो, लेकिन अभी क्या करना है? परसेन्टेज को बढ़ाओ। परसेन्टेज कम है। पेपर जो दिया है उसकी रिजल्ट यह है - नॉलेज की शक्ति से स्टेज को बना लेते हो, लेकिन परसेन्टेज से स्वयं भी सन्तुष्ट नहीं हो। अभी यह सम्पूर्ण करना है। ज्ञान के फोर्स के साथ जो महीनता का सुनाया उसके कारण नकली, नुकसान देने वाला फोर्स भी मिक्स हो जाता है। नकली फोर्स, नुकसान देने वाला फोर्स न आये उसके लिए क्या बात स्मृति में रखेंगे? अगर हर आत्मा के प्रति तरस की भावना सदा के लिए रहे तो न किसका तिरस्कार करेंगे, न किसी द्वारा अपना तिरस्कार समझेंगे। जहाँ तरस होगा वहाँ फोर्स कभी भी नहीं हो सकता। जहाँ रहमदिल बनना चाहिए वहाँ रहमदिल बनने के बजाय रोबदार बन जाते हैं, लेकिन यहाँ विश्व महाराजन् नहीं हो। अपने को स्टेट के मालिक समझते हो ना। यह सभी स्टेट्स मिनिस्टर्स आये हुए हैं। तो स्टेट के मालिक समझने से निराकारी और निरहंकारी की स्टेज भूल जाते हो। स्टेट के सेवाधारी हो न कि कोई भी आत्मा से सेवा लेने वाले हो। अगर कोई को यह भी संकल्प आता है कि - मैंने इतना किया, मुझे इससे कुछ शान-मान वा महिमा मिलनी चाहिए - यह भी लेना हुआ, लेने की भावना हुई। दाता के बच्चे अगर यह भी लेने का संकल्प करते हो तो दाता नहीं हुए। यह भी लेना, देने वाले के आगे शोभता नहीं है। इसको कहा जाता है बेहद के वैरागी। सेवाधारी को यह भी संकल्प नहीं उठना चाहिए। तब स्टेट से अपने बेहद के विश्व महाराजन् का स्टेट्स पा सकेंगे। अच्छा। जो निष्कामी होगा, वही विश्व का कल्याणकारी बनेगा। रहमदिल होगा। कर्त्तव्य की प्राप्ति स्वत: होना दूसरी बात है लेकिन कामना से प्राप्त करना - यह अल्पकाल की प्राप्ति भल होती है, लेकिन अनेक जन्मों के लिए भी अनेक प्राप्तियों से वंचित कर देती है। प्राप्ति, अप्राप्ति का साधन बन जाती है। फल की प्राप्ति होना दूसरी बात है, प्रकृति दासी होना दूसरी बात है। ऐसे अल्पकाल के प्राप्ति के रूप को परखते चलना। कोई समझते हैं शक्ति नहीं है, क्यों? वेस्टेज ज्यादा है। वेस्टेज होने के कारण स्टेज बढ़ती नहीं है। अच्छा।